सांभ में आपका स्वागत है
सांभ आखिर है क्या ?
सांभ एक प्रयास है आधुनिकता की आपाधापी में गुम हो रही हमारी सांस्कृतिक , सामाजिक एवं पारम्परिक विरासतों को फिर से सहेज के रखने का तथा जाने – अनजाने अपनी संस्कृति से विमुख हो रही वर्तमान पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक एवं पारम्परिक सरोकारों से जोड़ने का…
“जियां अहाँ दा शरीर है उस वास्ते खून दी जरूरत है , तियां ही मैं एह समझदा की कुसी संस्कृति जो जिन्दा रखने वास्ते उसदी भाषा बड़ी जरूरी है”
मुख्य लेख
पहाड़ों की लिपि टांकरी
टांकरी लिपि उत्तर भारत में अर्वाचीन काल मे प्रचलित होने वाली लिपि रही है। लिपि और भाषा पर अनेकों बार लोग भ्रमित होते देखे गए हैं। वरन इस अंतर को अन्यान्य विद्वानों द्वारा बारंबार स्पष्ट करने के उपरांत भी टांकरी को भाषा कहने की त्रुटि लोग सहज ही कर जाते हैं। यह लिपि पहाड़ों में मुख्यतः 15वीं से 20वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक अधिक प्रयोग की गई है……..
सिकंदर के सैनिकों के वंशज नहीं, इंडो-मंगोलियन्स हैं मलाणावासी
कुंजड़ी - मलहार
हमारी पहल
धौलाधार क्लीनर्स(Dhauladhar Cleaners) धर्मशाला, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित स्वयंसेवकों का एक समूह है।
- अगर पहाड़ों में प्रदूषण है, तो हमारे पास समाधान है
- कल को हरा-भरा और स्वच्छ बनाएं
- खुले सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से पर्यावरण संबंधी मुद्दों को सक्रिय रूप से हल करने के लिए सहयोग और साझा करने की एक निःशुल्क प्रक्रिया करें।
लोग क्या कहते है
“Sambh! You guys are on track to revive the culture and of course protect it for future generations!”