महाकालेश्वर
सतयुग में जब राक्षसों ने भगवान शंकर से वर प्राप्त किया तो वह इतने बलबान हो गए कि उत्पात से पृथ्वी को भयाक्रान्त कर दिया | राक्षसों से तंग देवताजन ब्रह्मा के पास गए परन्तु उन्होने देवताओं को विष्णु के पास भेज दिया | विष्णु ने असर्मथा प्रकट करते हुये शंकर के पास अपनी रक्षा की गुहार करने को भेजा |
भगवान शंकर ने देवताओं की विनती सुनी और योगमाया को जगाकर महाकाली का रूप धारण करने के लिय कहा ताकि राक्षसों का संहार कर सके | देवी ने भयंकर रूप धारण कर राक्षसों का विनाश कर दिया | देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ शंकर जी ने खुद राक्षस का रूप धारण कर महाकाली से भयंकर युद्ध किया की देवतागण भयभीत हो गये |शंकर ने जब उन्हे चिंतित देखा तो एक उपाय निकला | वह खुद धरती पर गिर गये | महाकाली ने जैसे ही राक्षस समझ कर प्रहार करना चाहा तो उन्हे शंकर जी का रूप स्पष्ट दिखाई पड़ा और क्रोध शांत हुआ | महाकाली ने गलती का प्रायश्चित करने के लिय हजारों साल हिमालय में विचरती रही |
एक दिन यहाँ व्यास के किनारे बैठकर शंकर को याद किया भगवान ने उन्हे दर्शन दिये जिससे उनका प्रायश्चित खत्म हुआ उसी समय यहाँ ज्योतिलिंग की सथापना हुई और इस स्थान का नाम महाकालेश्वर पड़ गया |